आदमी
ला-इंतिहा जहान-ए-मुजस्सम से भी सिवा
ला-मुन्तहा ज़मानों में रहते हुए ये अबद
क़रनों से रेंगती हुई तक़्वीम-ए-काएनात
आब-ओ-गिल-ओ-शुऊर सर-ए-दो-जहाँ अदम
ला-फ़ल्सफ़ा निहायत-ए-फ़हम-ए-पयम्बरी
ज़ौक़-ए-नुमू की हाथ में रेखाएँ दम-ब-दम
क्या जानिए कि कितने बरस का है ये चराग़
तहज़ीब-ए-सोख़्ता है अयाग़-ए-हुरूफ़ में
फ़िक्र ओ ख़िरद की बहर ओ तलातुम में कश्तियाँ
उभरीं कहीं तो रिज़्क़-ए-समुंदर कहीं हुईं
इस एहतिमाम-ए-ख़्वाब-ए-तहय्युर में मैं नज़ाद
तन्हा खड़ा हूँ अपनी नुमाइश के वास्ते
मैं भीड़ के नवाह में मादूम आदमी
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