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ये जो तरतीब से बना हुआ मैं - इलियास बाबर आवान कविता - Darsaal

ये जो तरतीब से बना हुआ मैं

ये जो तरतीब से बना हुआ मैं

एक मुद्दत में रास्ता हुआ मैं

लोग आते थे देखने मुझ को

ऐसे पत्थर से आईना हुआ मैं

क्या ख़बर कब नज़र में आ जाऊँ

शोर में एक बोलता हुआ मैं

अब तो पहचान में नहीं आता

तेरी दीवार से जुड़ा हुआ मैं

शहर के बीच आ गया इक दिन

सहन के बीच दौड़ता हुआ मैं

आप भी अपना शौक़ फ़रमाएँ

जाने कितनों का हूँ डसा हुआ मैं

शाम होती है तो निकलता हूँ

उस की पलकों से चीख़ता हुआ मैं

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