न-जाने कौन तिरे काख़-ओ-कू में आएगा
न-जाने कौन तिरे काख़-ओ-कू में आएगा
जो आएगा वो मिरी आरज़ू में आएगा
मैं जानता हूँ मिरे ब'अद मेरे मरक़द पर
कोई ग़ुबार मिरी जुस्तुजू में आएगा
यही तो सोच के जलते हैं मस्जिदों के चराग़
दरून-ए-शब यहाँ कोई वज़ू में आएगा
तिरे ख़याल की लौ से चमक उठे हैं हुरूफ़
अभी तो तू मिरे हर्फ़-ए-नुमू में आएगा
मुझे ख़ुदा से ज़रा हम-कलाम होने दो
तुम्हारा ज़िक्र भी इस गुफ़्तुगू में आएगा
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