कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है
कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है
कि हम ने दिल यूँही सरशार रक्खा होता है
मैं रख के जाता हूँ खिड़की में कुछ गुलाब के फूल
किसी ने साया-ए-दीवार रक्खा होता है
अजीब लोग हैं दीवार-ए-शब पे चलते हैं
चराग़ जेब में बेकार रक्खा होता है
कभी-कभार उसे फल फूल लगने लगते हैं
हमारे शानों पे जो बार रक्खा होता है
अजीब शहर है पत्थर उसी पे आता है
जो आइना पस-ए-दीवार रक्खा होता है
(818) Peoples Rate This