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हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर! - इलियास बाबर आवान कविता - Darsaal

हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!

हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!

तुम्हारा हुस्न तरहदार हो गया तो फिर!

मिला के ख़ाक में वो सोचता रहा बरसों

मैं आइने में नुमूदार हो गया तो फिर!

रुकावटें तो सफ़र का जवाज़ होती हैं

ये रास्ता कहीं हमवार हो गया तो फिर!

वो माहताब है, मैं झील और सफ़र दरपेश

वो मुझ से होता हुआ पार हो गया तो फिर!

तमाम शहर ने लौटा दिया है ख़ाली हाथ

और उस के दर से भी इंकार हो गया तो फिर!

तो क्यूँ न रास्ता तब्दील कर लिया जाए

कहीं जो मुझ से तुम्हें प्यार हो गया तो फिर!

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