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अपना अपना दुख बतलाना होता है - इलियास बाबर आवान कविता - Darsaal

अपना अपना दुख बतलाना होता है

अपना अपना दुख बतलाना होता है

मिट्टी से तस्वीर में आना होता है

मेरी सुब्ह ज़रा कुछ देर से होती है

मुझे किसी को ख़्वाब सुनाना होता है

नए नए मंज़र का हिस्सा बनता हूँ

जैसे जैसे जिस्म पुराना होता है

इक चिड़िया मुझ से भी पहले उठती है

जैसे उस को दफ़्तर जाना होता है

यार किताबें कितनी झूटी होती हैं

इन में कोई और ज़माना होता है

घर के अंदर इतनी गलियाँ पड़ती हैं

कभी-कभार ही बाहर जाना होता है

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