मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा
मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा
ख़ुद को रस्ते से हटा भी दूँगा
इतना एहसान-फ़रामोश नहीं
बेवफ़ाई का सिला भी दूँगा
अपनी हसरत तो वो पूरी कर ले
दुश्मन-ए-जाँ को दुआ भी दूँगा
पहले दरवाज़े पे दस्तक दे लूँ
फिर ये दीवार गिरा भी दूँगा
ज़िंदगी जुर्म तो आएद कर दे
बे-गुनाही को सज़ा भी दूँगा
क़त्ल भी मैं ही करूँगा ख़ुद को
और फिर ख़ून-बहा भी दूँगा
आग भड़केगी 'तबस्सुम' अपनी
यानी शोलों को हवा भी दूँगा
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