इकराम मुजीब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इकराम मुजीब
नाम | इकराम मुजीब |
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अंग्रेज़ी नाम | Ikram Mujeeb |
किस क़दर गुनाहों के मुर्तकिब हुए हैं हम
कम ज़रा न होने दी एक लफ़्ज़ की हुरमत
इस हसीन मंज़र से दुख कई उभरने हैं
हिज्र की मसाफ़त में साथ तू रहा हर दम
एक दर्द की लज़्ज़त बरक़रार रखने को
ज़हर में बुझे सारे तीर हैं कमानों पर
ये कमाल भी तो कम नहीं तिरा
मौत सी ख़मोशी जब उन लबों पे तारी की
और ही कहीं ठहरे और ही कहीं पहुँचे
ऐ ख़ुदा भरम रखना बरक़रार इस घर का