दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें

दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें

बे-ख़ुदी चाहिए हम को कि ख़ुदा जिस को कहें

हम से आबाद है दुनिया-ए-तसव्वुर तो क्या

कि नहीं एक वो तस्वीर ख़ुदा जिस को कहें

जुरअत-ए-शौक़ है कहते हैं मोहब्बत जिस को

उसी जुरअत पे है इसरार-ए-वफ़ा जिस को कहें

समझ ऐ दोस्त उसे ज़र्ब-ए-नज़र की आवाज़

हम कभी दिल के धड़कने की सदा जिस को कहें

क़ुल्ज़ुम-ए-दिल न हुआ आईना-सामाँ ऐ दोस्त

अभी आ जाती है इक मौज-ए-दुआ जिस को कहें

है तिरे कीसा-ए-पिंदार में ऐसी कोई चीज़

दिल की बेताब मोहब्बत का सिला जिस को कहें

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