जुज़ क़ुर्बत-ए-जाँ पर्दा-ए-जाँ कोई नहीं था

जुज़ क़ुर्बत-ए-जाँ पर्दा-ए-जाँ कोई नहीं था

वो था तो वहाँ और जहाँ कोई नहीं था

था एक ख़याल और ख़याल-ए-रुख़-ए-जानाँ

वो वाहिमा-ए-वहम-ओ-गुमाँ कोई नहीं था

इक साअत-ए-सद-साल में ठहरा था कहीं दिल

फिर क़ाफ़िला-ए-उम्र-ए-रवाँ कोई नहीं था

था कोई वहाँ जो है यहाँ भी है वहाँ भी

जो हूँ मैं यहाँ हूँ मैं वहाँ कोई नहीं था

सद-शुक्र ज़माने को न था गोश-ए-समाअत

हम को भी मगर रब्त-ए-ज़बाँ कोई नहीं था

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