क्या बताऊँ दिल में किस की याद का
एक काँटा चुभ रहा है मुस्तक़िल
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सख़्त-जानी की बदौलत अब भी हम हैं ताज़ा-दम
दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे
बे-सबब 'राग़िब' तड़प उठता है दिल
ले जाए जहाँ चाहे हवा हम को उड़ा कर
दिल से जब आह निकल जाएगी
तर्क-ए-तअल्लुक़ात नहीं चाहता था मैं
हो चराग़-ए-इल्म रौशन ठीक से
क्या बताऊँ कि कितनी शिद्दत से
ये वस्ल की रुत है कि जुदाई का है मौसम
इक बड़ी जंग लड़ रहा हूँ
दिल में कुछ भी तो न रह जाएगा