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वो कहते हैं कि आँखों में मिरी तस्वीर किस की है - इफ़्तिख़ार राग़िब कविता - Darsaal

वो कहते हैं कि आँखों में मिरी तस्वीर किस की है

वो कहते हैं कि आँखों में मिरी तस्वीर किस की है

मैं कहता हूँ कि रौशन इस क़दर तक़दीर किस की है

वो कहते हैं कि किस ने आप को रोका है जाने से

मैं कहता हूँ कि मेरे पाँव में ज़ंजीर किस की है

वो कहते हैं कि है इंसान तो इक ख़ाक का पुतला

मैं कहता हूँ कि इतनी अज़्मत-ओ-तौक़ीर किस की है

वो कहते हैं कि दिल में आप ने किस को बसाया है

मैं कहता हूँ कि ये दुनिया-ए-दिल जागीर किस की है

वो कहते हैं कि किस ने जा-ब-जा लिख्खा है मेरा नाम

मैं कहता हूँ शिकस्ता इस क़दर तहरीर किस की है

वो कहते हैं कि मैं ने आप सा सामे नहीं देखा

मैं कहता हूँ कि इतनी पुर-कशिश तक़रीर किस की है

वो कहते हैं तिरे शेरों में है शोख़ी क़यामत की

मैं कहता हूँ ख़याल ओ फ़िक्र में तनवीर किस की है

वो कहते हैं कि हम हैं दुश्मनान-ए-अम्न के दुश्मन

मैं कहता हूँ कि उन के हाथ में शमशीर किस की है

वो कहते हैं कि 'राग़िब' तुम नहीं रखते ख़याल अपना

मैं कहता हूँ कि हर दम फ़िक्र दामन-गीर किस की है

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