तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना

तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना

मैं भूला न दिल का टूट जाना

क्या देता रहेगा दिल पे दस्तक

इक जुमला जो मैं ने झूट जाना

इक सूरत उतारना ग़ज़ल में

लफ़्ज़ों का पसीना छूट जाना

क्या रोऊँ तुझे ऐ ध्यान-दर्पण

पल भर में है तुझ को टूट जाना

किस दर्जा सुरूर-बख़्श था वो

उस कूचे में झूट-मूट जाना

रुक जाएगा साथ धड़कनों के

ख़ामोशी का टूट-फूट जाना

वो आना किसी का दिल में 'राग़िब'

और सब्र-ओ-क़रार लूट जाना

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