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चाहतों का सिलसिला है मुस्तक़िल - इफ़्तिख़ार राग़िब कविता - Darsaal

चाहतों का सिलसिला है मुस्तक़िल

चाहतों का सिलसिला है मुस्तक़िल

सब्ज़ मौसम कर्ब का है मुस्तक़िल

क्या बताऊँ दिल में किस की याद का

एक काँटा चुभ रहा है मुस्तक़िल

बढ़ रहा है मुस्तक़िल क़हत-ए-शजर

ज़हर-आलूदा फ़ज़ा है मुस्तक़िल

राह-ए-उल्फ़त में कहाँ आसानियाँ

पुर-ख़तर ये रास्ता है मुस्तक़िल

आ गई है फ़स्ल-ए-आज़ादी मगर

ख़ौफ़ का पौदा हरा है मुस्तक़िल

दुश्मनी के सब दरीचे बंद हैं

दोस्ती का दर खुला है मुस्तक़िल

इश्क़ के इक टिमटिमाते दीप ने

दिल को रौशन कर रखा है मुस्तक़िल

एक मौसम की कसक है दिल में दफ़्न

मीठा मीठा दर्द सा है मुस्तक़िल

ज़ेहन ओ दिल की वादी-ए-पुर-अम्न में

गूँजती किस की सदा है मुस्तक़िल

देख कर रस्म-ए-वफ़ा इस दौर की

शर्मगीं हर्फ़-ए-वफ़ा है मुस्तक़िल

ग़म किसी का हो गया 'राग़िब' नसीब

वर्ना इस दुनिया में क्या है मुस्तक़िल

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