तिरा है काम कमाँ में उसे लगाने तक
तिरा है काम कमाँ में उसे लगाने तक
ये तीर ख़ुद ही चला जाएगा निशाने तक
मैं शीशा क्यूँ न बना आदमी हुआ क्यूँकर
मुझे तो उम्र लगी टूट फूट जाने तक
गए हुओं ने पलट कर सदा न दी मुझ को
मैं कितनी बार गया ग़ार के दहाने तक
तुझे तो अपने परों पर ही ए'तिबार नहीं
तू कैसे आएगा उड़ कर मिरे ज़माने तक
किया था फ़ैसला बुनियाद-ए-आशियाँ का 'नसीम'
हवाएँ तिनके उड़ा लाईं आशियाने तक
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