नाम भी जिस का ज़बाँ पर था दुआओं की तरह
नाम भी जिस का ज़बाँ पर था दुआओं की तरह
वो मुझे मिलता रहा ना-आश्नाओं की तरह
आ कि तेरे मुंतज़िर हैं आज भी दीवार-ओ-दर
गूँजता है घर में सन्नाटा सदाओं की तरह
वो शजर जलता रहा ख़ुद किस कड़कती धूप में
जिस का साया था मिरे सर पर घटाओं की तरह
झुक रहे थे बाग़ के सब फूल उस के सामने
घास पर बैठा था वो फ़र्मां-रवाओं की तरह
मैं भला कैसे उसे इक अजनबी कह दूँ 'नसीम'
जिस ने देखा था पलट कर आश्नाओं की तरह
(841) Peoples Rate This