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किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है - इफ़्तिख़ार नसीम कविता - Darsaal

किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है

किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है

मिरा नहीं वो किसी शख़्स का हुआ तो है

यही बहुत है कि उस ने मुझे भी मिस तो किया

ये लम्स मुझ में अभी तक रचा हुआ तो है

उसे मैं खुल के कभी याद कर तो सकता हूँ

मुझे ख़ुशी है वो मुझ से जुदा हुआ तो है

सुकूत-ए-शब ही सही मेरा हम-सफ़र लेकिन

मिरे सिवा भी कोई जागता हुआ तो है

घुटन कि बढ़ती चली जा रही है अंदर की

तमाम ख़ुश हैं कि मौसम खुला हुआ तो है

ये और बात कि मैं ज़िंदा रह गया हूँ 'नसीम'

हर इक सितम मिरी जाँ पर रवा हुआ तो है

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