कई दिनों से मिरे साथ साथ चलती है
कोई उदास सी ठंडी सी कोई परछाईं
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मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा
ख़ुदा! सिला दे दुआ का, मोहब्बतों के ख़ुदा
इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं
मैं तुम को ख़ुद से जुदा कर के किस तरह देखूँ
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
आँख झपकी थी बस इक लम्हे को और इस के ब'अद
जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद
रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा
मिरे वजूद के अंदर मुझे तलाश न कर
तुम्हें भी चाहा, ज़माने से भी वफ़ा की थी
सवाद-ए-हिज्र में रक्खा हुआ दिया हूँ मैं
मोहब्बत और इबादत में फ़र्क़ तो है नाँ