अंदलीबों से कभी गुल से कभी लेता हूँ
अंदलीबों से कभी गुल से कभी लेता हूँ
अज़्म-ए-बर्दाश्त दम-ए-तिश्ना-लबी लेता हूँ
तंज़ की सर्द हवाएँ जो सताती हैं मुझे
शिद्दत-ए-गर्मी-ए-एहसास को पी लेता हूँ
ज़िंदगी बाक़ी भी अपनों में गुज़र जाएगी
इस लिए तल्ख़ी-ए-हालात को पी लेता हूँ
मुझ पे सब लोग गुनह डाल दिया करते हैं
किस लिए किस के लिए दरिया-दिली लेता हूँ
इंकिसारी ने मुझे इतनी बुलंदी दी है
भूल कर भी न कभी राह-ए-ख़ुदी लेता हूँ
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