Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_30f0deefd7fbcc8f93ddd4aa8f7542e8, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
रौशनी की डोर थामे ज़िंदगी तक आ गए - इफ़्तिख़ार फलक काज़मी कविता - Darsaal

रौशनी की डोर थामे ज़िंदगी तक आ गए

रौशनी की डोर थामे ज़िंदगी तक आ गए

चोर अहद-ए-सामरी के जल-परी तक आ गए

वाइज़ान-ए-ख़ुश-हवस की झिड़कियाँ सुनते हुए

ला-शुऊरी तौर पर हम सरख़ुशी तक आ गए

ढोल पीटा जा रहा था और ख़ाली पेट हम

हँसते-गाते थाप सुनते ढोलची तक आ गए

वाहिमों की ना-तमामी का इलाक़ा छोड़ कर

कुछ परिंदे हाथ बाँधे सब्ज़गी तक आ गए

भाई बहनों की मोहब्बत का नशा मत पोछिए

बे-तकल्लुफ़ हो गए तो गुदगुदी तक आ गए

चाक-ए-तोहमत पर घुमाया जा रहा था इश्क़ को

जब हमारे अश्क ख़्वाब-ए-ख़ुद-कुशी तक आ गए

गालियाँ बकने लगे ग़ुस्से हुए लड़ने लगे

रक़्स करते करते हम भी ख़ुद-सरी तक आ गए

ऐ हसीं लड़की तुम्हारे हुस्न के लज़्ज़त परस्त

काफ़िरी से सर बचा कर शाइ'री तक आ गए

(1026) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Raushni Ki Dor Thame Zindagi Tak Aa Gae In Hindi By Famous Poet Iftikhar Falak Kazmi. Raushni Ki Dor Thame Zindagi Tak Aa Gae is written by Iftikhar Falak Kazmi. Complete Poem Raushni Ki Dor Thame Zindagi Tak Aa Gae in Hindi by Iftikhar Falak Kazmi. Download free Raushni Ki Dor Thame Zindagi Tak Aa Gae Poem for Youth in PDF. Raushni Ki Dor Thame Zindagi Tak Aa Gae is a Poem on Inspiration for young students. Share Raushni Ki Dor Thame Zindagi Tak Aa Gae with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.