बे-ख़बर मुझ से मिरे दिल में हमेशा हँसता
बे-ख़बर मुझ से मिरे दिल में हमेशा हँसता
फूल नर्गिस का सुराही में अकेला हँसता
चलते चलते कहीं रुक जाती ये दुनिया इक पल
चाँद हँसता ये हवा हँसती ये सहरा हँसता
जाने किस सोच में आता है गुज़र जाता है
रोज़ इक रोज़ मिरी उम्र में हँसता हँसता
फड़-फड़ाते हुए ख़्वाबों के कबूतर उड़ते
देर तक फिर मिरे कमरे में अंधेरा हँसता
मैं ने तन्हाई में जो उस को मुख़ातब कर के
की हैं बातें उन्हें सुनता तो वो कितना हँसता
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