Love Poetry of Iftikhar Arif (page 2)
नाम | इफ़्तिख़ार आरिफ़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Iftikhar Arif |
जन्म की तारीख | 1940 |
जन्म स्थान | Islamabad |
बद-शुगूनी
बदन-दरीदा रूहों के नाम एक नज़्म
अबू-तालिब के बेटे
ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में
ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा
ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं
ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ
ये बस्ती जानी-पहचानी बहुत है
ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी
थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था
तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है
सुख़न-ए-हक़ को फ़ज़ीलत नहीं मिलने वाली
सितारा-वार जले फिर बुझा दिए गए हम
शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या
शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है
सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई
समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है
समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं
सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
मेरा मालिक जब तौफ़ीक़ अर्ज़ानी करता है
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है
कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए
ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख
कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए