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कूच - इफ़्तिख़ार आरिफ़ कविता - Darsaal

कूच

जिस रोज़ हमारा कूच होगा

फूलों की दुकानें बंद होंगी

शीरीं-सुख़नों के हर्फ़-ए-दुश्नाम

बे-मेहर ज़बानें बंद होंगी

पलकों पे नमी का ज़िक्र ही क्या

यादों का सुराग़ तक न होगा

हमवारी-ए-हर-नफ़्स सलामत

दिल पर कोई दाग़ तक न होगा

पामाली-ए-ख़्वाब की कहानी

कहने को चराग़ तक न होगा

माबूद इस आख़िरी सफ़र में

तन्हाई को सुर्ख़-रू ही रखना

जुज़ तेरे नहीं कोई निगह-दार

उस दिन भी ख़याल तू ही रखना

जिस आँख ने उम्र भर रुलाया

उस आँख को बे-वज़ू ही रखना

जिस रोज़ हमारा कूच होगा

फूलों की दुकानें बंद होंगी

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