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इल्तिजा - इफ़्तिख़ार आरिफ़ कविता - Darsaal

इल्तिजा

मिरे शिकारियो अमान चाहता हूँ मैं

बस अब सलामती-ए-जाँ की हद तलक उड़ान चाहता हूँ मैं

मिरे शिकारियो अमान चाहता हूँ मैं

मैं एक बार पहले भी हरे-भरे दिनों की आरज़ू में ज़ेर-ए-दाम आ चुका हूँ

मुझ को बख़्श दो

मैं इस से पहले भी तो साया-ए-शजर की जुस्तुजू में इतने ज़ख़्म खा चुका हूँ

मुझ को बख़्श दो

मिरे शिकारियो अमान चाहता हूँ मैं

बस अब सलामती-ए-जाँ की हद तलक उड़ान चाहता हूँ मैं

बस एक घर ज़मीन ओ आसमाँ के दरमियान चाहता हूँ मैं

मिरे शिकारियो अमान चाहता हूँ मैं

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