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गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर - इफ़्तिख़ार आरिफ़ कविता - Darsaal

गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर

सिपाही आज भी कोई नहीं आया

किसी ने फूल ही भेजे

न बस्ती के घरों से आश्ना गीतों की आवाज़ें सुनाई दें

न परचम कोई लहराया

सिपाही! शाम होने आई और कोई नहीं आया

फ़ना की ख़ंदक़ों को जान दे कर पार कर जाना बड़ी बात

जहाँ जीने की ख़ातिर मर रहे हों लोग उस बस्ती में मर जाना बड़ी बात

मगर पल भर को ये सोचा तो होता

तुम्हारे बाद घर की मुंतज़िर दहलीज़ को जागे हुए दिल की निशानी कौन देगा

हवाओं से उलझती रौशनी को ए'तिबार-ए-कामरानी कौन देगा

दर-ओ-दीवार से लिपटी हुई बेलों को पानी कौन देगा

(1995) Peoples Rate This

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