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एलान नामा - इफ़्तिख़ार आरिफ़ कविता - Darsaal

एलान नामा

मैं लाख बुज़दिल सही मगर मैं उसी क़बीले का आदमी हूँ कि जिस के बेटों ने

जो कहा उस पे जान दे दी

मैं जानता था मिरे क़बीले की ख़ेमा-गाहें जलाई जाएँगी और तमाशाई

रक़्स-ए-शोला-फ़िशाँ पर इसरार ही करेंगे

मैं जानता था मिरा क़बीला बुरीदा और बे-रिदा सरों की गवाहियाँ

ले के आएगा फिर भी लोग इंकार ही करेंगे

सो मैं कमीं-गाह-ए-आफ़ियत में चला गया था

सो मैं अमाँ-गाह-ए-मस्लहत में चला गया था

और अब मुझे मेरे शहसवारों का ख़ून आवाज़ दे रहा है

तो नज़्र-ए-सर ले के आ गया हूँ

तबाह होने को एक घर ले के आ गया हूँ

मैं लाख बुज़दिल सही मगर मैं उसी क़बीले का आदमी हूँ!

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