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अबू-तालिब के बेटे - इफ़्तिख़ार आरिफ़ कविता - Darsaal

अबू-तालिब के बेटे

जबीन-ए-वक़्त पर लिक्खी हुई सच्चाइयाँ रौशन रही हैं

ता-अबद रौशन रहेंगी

ख़ुदा शाहिद है और वो ज़ात शाहिद है कि जो वज्ह-ए-असास-ए-अन्फ़ुस-ओ-आफ़ाक़ है

और ख़ैर की तारीख़ का वो बाब-ए-अव्वल है

अबद तक जिस का फ़ैज़ान-ए-करम जारी रहेगा

यक़ीं के आगही के रौशनी के क़ाफ़िले हर दौर में आते रहे हैं

ता-अबद आते रहेंगे

अबू-तालिब के बेटे हिफ़्ज़-ए-नामूस-ए-रिसालत की रिवायत के अमीं थे

जान देना जानते थे

वो मुस्लिम हों कि वो अब्बास हों औन ओ मोहम्मद हों अली-अकबर हों क़ासिम हों अली-असग़र हों

हक़ पहचानते थे

लश्कर-ए-बातिल को कब गर्दानते थे

अबू-तालिब के बेटे सर-बुरीदा हो के भी ऐलान-ए-हक़ करते रहे हैं

अबू-तालिब के बेटे पा-ब-जौलाँ हो के भी ऐलान-ए-हक़ करते रहे हैं

अबू-तालिब के बेटे सर्फ़-ए-ज़िंदाँ हो के भी ऐलान-ए-हक़ करते रहे हैं

मदीना हो नजफ़ हो कर्बला हो काज़िमैन ओ सामिरा हो मशहद ओ बग़दाद हो

आल-ए-अबू-तालिब के क़दमों के निशाँ

इंसानियत को उस की मंज़िल का पता देते रहे हैं ता-अबद देते रहेंगे

अबू-तालिब के बेटों और ग़ुलामान-ए-अली-इब्न-ए-अबी-तालिब में इक निस्बत रही है

मोहब्बत की ये निस्बत उम्र भर क़ाएम रहेगी

ता-अबद क़ाएम रहेगी

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