Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_d79ea5eb2212e5a82734afabe2ee5016, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं - इफ़्तिख़ार आरिफ़ कविता - Darsaal

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं

तुम ने पूछा तो होता बतला सकता था मैं

आसूदा रहने की ख़्वाहिश मार गई वर्ना

आगे और बहुत आगे तक जा सकता था मैं

छोटी-मोटी एक लहर ही थी मेरे अंदर

एक लहर से क्या तूफ़ान उठा सकता था मैं

कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर

इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं

जैसे सब लिखते रहते हैं ग़ज़लें नज़्में गीत

वैसे लिख लिख कर अम्बार लगा सकता था मैं

(1105) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jaisa Hun Waisa Kyun Hun Samjha Sakta Tha Main In Hindi By Famous Poet Iftikhar Arif. Jaisa Hun Waisa Kyun Hun Samjha Sakta Tha Main is written by Iftikhar Arif. Complete Poem Jaisa Hun Waisa Kyun Hun Samjha Sakta Tha Main in Hindi by Iftikhar Arif. Download free Jaisa Hun Waisa Kyun Hun Samjha Sakta Tha Main Poem for Youth in PDF. Jaisa Hun Waisa Kyun Hun Samjha Sakta Tha Main is a Poem on Inspiration for young students. Share Jaisa Hun Waisa Kyun Hun Samjha Sakta Tha Main with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.