हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला
हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला
जिसे नजीब समझते थे कम-नसब निकला
सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर
किस एहतिमाम से परवर-दिगार-ए-शब निकला
हमारी गर्मी-ए-गुफ़्तार भी रही बे-सूद
किसी की चुप का भी मतलब अजब अजब निकला
बहम हुए भी मगर दिल की वहशतें न गईं
विसाल में भी दिलों का ग़ुबार कब निकला
अभी उठा भी नहीं था किसी का दस्त-ए-करम
कि सारा शहर लिए कासा-ए-तलब निकला
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