क़ुर्बान जाऊँ हुस्न-ए-क़मर इंतिसाब के

क़ुर्बान जाऊँ हुस्न-ए-क़मर इंतिसाब के

आरिज़ हैं या हैं फूल शगुफ़्ता गुलाब के

अब दिन कहाँ रहे वो हमारे सबात के

इक धूप थी जो साथ गई आफ़्ताब के

हर इक अदा में उस की है क़ौस-ए-क़ुज़ह का रंग

है गुफ़्तुगू में कितने हवाले किताब के

हालात ने झिंझोड़ के होशियार तो किया

जागे हुए हैं फिर भी तो आसार ख़्वाब के

फैला चुके हैं फ़िरक़ा-परस्ती का ज़हर वो

आए हैं सामने जो अदद इंतिख़ाब के

गोली से हल न होंगे मोहब्बत से होंगे हल

क़ज़िए हों काश्मीर के या पंज-आब के

निकली सरों की फ़स्ल है गोभी के खेत से

खिलते जहाँ ये फूल थे कल तक गुलाब के

पीर-ए-मुग़ाँ से 'फ़ख़्र' यही इक सवाल है

औंधे हैं आज जाम-ओ-सुबू क्यूँ शराब के

(905) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Qurban Jaun Husn-e-qamar Intisab Ke In Hindi By Famous Poet Iftikhar Ahmad Fakhr. Qurban Jaun Husn-e-qamar Intisab Ke is written by Iftikhar Ahmad Fakhr. Complete Poem Qurban Jaun Husn-e-qamar Intisab Ke in Hindi by Iftikhar Ahmad Fakhr. Download free Qurban Jaun Husn-e-qamar Intisab Ke Poem for Youth in PDF. Qurban Jaun Husn-e-qamar Intisab Ke is a Poem on Inspiration for young students. Share Qurban Jaun Husn-e-qamar Intisab Ke with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.