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वीराना-ए-ख़याल - इफ़्तिख़ार आज़मी कविता - Darsaal

वीराना-ए-ख़याल

दश्त-ए-गर्म-ओ-सर्द में ये बे-दयारों का हुजूम

बे-ख़बर माहौल से

चुप-चाप

ख़ुद से हम-कलाम

चल रहा है सर झुकाए इस तरह

जिस तरह मरघट पे रूहों का ख़िराम

ज़र्द चेहरों पर है सदियों की थकन

साँस लेते हैं कुछ ऐसे

जैसे होती हो चुभन

होंट पर ग़मगीं तबस्सुम और सीने में बुका

हर क़दम पर हड्डियों के कड़कड़ाने की सदा

उन की आँखें

जिन पे हुक्म-ए-दीदा-ए-बीना लगाते हैं

देवताओं की बसीरत काँप जाए

ज़ेहन ओ दिल का फ़ासला तय करते करते हाँप जाए

वुसअत-ए-अर्ज़-ओ-समा इक दीदा-ए-हैरान है

उफ़! ये मेला किस क़दर वीरान है!!

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Virana-e-KHayal In Hindi By Famous Poet Iftikhar Aazmi. Virana-e-KHayal is written by Iftikhar Aazmi. Complete Poem Virana-e-KHayal in Hindi by Iftikhar Aazmi. Download free Virana-e-KHayal Poem for Youth in PDF. Virana-e-KHayal is a Poem on Inspiration for young students. Share Virana-e-KHayal with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.