वो मुझ को भूल चुका अब यक़ीन है वर्ना
वफ़ा नहीं तो जफ़ाओं का सिलसिला रखता
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(689) Peoples Rate This
जिस्म-ओ-जाँ की बस्ती में सिलसिले नहीं मिलते
अजीब कर्ब-ए-मुसलसल दिल-ओ-नज़र में रहा
ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे
घबरा गए हैं वक़्त की तन्हाइयों से हम
मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए
ख़्वाब आँखों से ज़बाँ से हर कहानी ले गया
रूह जिस्मों से बाहर भटकती रही
अगर वो चाँद की बस्ती का रहने वाला था
अगर वो मिल के बिछड़ने का हौसला रखता
पत्थर के जिस्म मोम के चेहरे धुआँ धुआँ
वो मिल गया तो बिछड़ना पड़ेगा फिर 'ज़र्रीं'