पत्थर के जिस्म मोम के चेहरे धुआँ धुआँ
किस शहर में उड़ा के हवा ले गई मुझे
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(906) Peoples Rate This
ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे
मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए
वो मुझ को भूल चुका अब यक़ीन है वर्ना
रूह जिस्मों से बाहर भटकती रही
अगर वो मिल के बिछड़ने का हौसला रखता
जिस्म-ओ-जाँ की बस्ती में सिलसिले नहीं मिलते
घबरा गए हैं वक़्त की तन्हाइयों से हम
बे-सम्त रास्तों पे सदा ले गई मुझे
वो मिल गया तो बिछड़ना पड़ेगा फिर 'ज़र्रीं'
कौन पहचानेगा 'ज़र्रीं' मुझ को इतनी भीड़ में