नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया
नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया
हक़ीक़तों के दर्क से फ़रार कर लिया गया
क़ुयूद-ए-आगही से जब सहम गईं जिबिल्लतें
नज़र के गिर्द रंग का हिसार कर लिया गया
शुहूद की जो सत्ह पे अनानियत का शोर उठा
तो दामन-ए-ख़ुदी को तार-तार कर लिया गया
गुमाँ हुआ कि रास्ता अभी मिरी नज़र में है
शरीर शुत्र-नफ़्स बे-महार कर लिया गया
जो लोग दिल की उलझनों में ग़र्क़ थे ख़मोश थे
उन्हें भी अहल-ए-जज़्ब में शुमार कर लिया गया
रह-ए-तलब की सख़्तियों के शिकवे लब-ब-लब हुए
सुरूर-ए-जिद्द-ओ-जहद को ख़ुमार कर लिया गया
चले कभी कभी उधर से अज़्मतों के क़ाफ़िले
वफ़ा का अज़्म जिन से पाएदार कर लिया गया
वो इश्क़ था कि बंदगी ज़रूरतें की आगही
बस एक रब्त था जो उस्तुवार कर लिया गया
वरक़ वरक़ रुमूज़-ए-आगही के थे लिखे हुए
कुतुब को बार-ए-पुश्त-बर-हिमार कर लिया गया
उसूल और फ़ुरूअ' सब 'शहाब' एक तरफ़ हुए
अजब निज़ाम-ए-ज़ीस्त इख़्तियार कर लिया गया
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