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है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम - इफ़्फ़त अब्बास कविता - Darsaal

है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम

है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम

लज़्ज़त-ए-दश्ना-ए-बदनाम तुम्हें क्या मा'लूम

तुम ने देखी है फ़क़त मेरी परेशाँ-हाली

मुझ पे क्या क्या हुए इकराम तुम्हें क्या मा'लूम

हैरती हो के उठाए हुए दिल फिरते हैं

इस के लग जाने का अंजाम तुम्हें क्या मा'लूम

जज़्बा-ए-ख़्वाहिश-ओ-एहसास की इस बाज़ी में

कौन हो जाएगा नाकाम तुम्हें क्या मा'लूम

देखते हो मुझे पर-बस्ता तो हँस देते हो

है यहाँ कौन तह-ए-दाम तुम्हें क्या मा'लूम

वक़्त का रंग बदलते नहीं देखा तुम ने

सूरत-ए-गर्दिश-ए-अय्याम तुम्हें क्या मा'लूम

मौसम-ए-मेहर के दो-चार बरस देखे हैं

सख़्ती-ए-मौसम-ए-आलाम तुम्हें क्या मा'लूम

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