उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को
उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को
कोई अपना के दिखाए कभी अनजाने को
ख़ुद-कुशी जैसा कोई जुर्म नहीं दुनिया में
कोई बतलाता नहीं जा के ये परवाने को
साक़ी-ए-वक़्त ने जब छीन ली हाथों से शराब
मैं ने टकरा दिया पैमाने से पैमाने को
ख़ाक-ज़ादा नहीं पैदा हुआ ऐसा कोई
जो हक़ीक़त में बदल दे मिरे अफ़्साने को
अबरहा जैसा अगर हो गया पैदा कोई
क्या बचा पाएँगे हम अपने ख़ुदा-ख़ाने को
एक मुफ़सिद की ये फैलाई हुई है अफ़्वाह
रात-भर शम्अ' से नफ़रत रही परवाने को
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