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उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को - इबरत बहराईची कविता - Darsaal

उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को

उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को

कोई अपना के दिखाए कभी अनजाने को

ख़ुद-कुशी जैसा कोई जुर्म नहीं दुनिया में

कोई बतलाता नहीं जा के ये परवाने को

साक़ी-ए-वक़्त ने जब छीन ली हाथों से शराब

मैं ने टकरा दिया पैमाने से पैमाने को

ख़ाक-ज़ादा नहीं पैदा हुआ ऐसा कोई

जो हक़ीक़त में बदल दे मिरे अफ़्साने को

अबरहा जैसा अगर हो गया पैदा कोई

क्या बचा पाएँगे हम अपने ख़ुदा-ख़ाने को

एक मुफ़सिद की ये फैलाई हुई है अफ़्वाह

रात-भर शम्अ' से नफ़रत रही परवाने को

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