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अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं - इब्राहीम अश्क कविता - Darsaal

अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं

अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं

बयान अपना कभी मुद्दआ किया ही नहीं

हर एक शख़्स को इंसान ही रखा हम ने

कि आदमी को नज़र में ख़ुदा किया ही नहीं

बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा

किसी से हम ने फिर अहद-ए-वफ़ा किया ही नहीं

कई दिशाओं से गुज़रा है कारवान-ए-हयात

ठहर के दिल को कहीं मुब्तला किया ही नहीं

पहाड़ ज़ुल्म-ओ-सितम के हँसी में काट दिए

अदा-ए-नाज़ कि कोई गिला किया ही नहीं

छुआ जिसे भी वही लफ़्ज़ बन गया तारीख़

कि बे-असर कोई जुमला अदा किया ही नहीं

तमाम उम्र सँवारा ग़ज़ल की दुनिया को

कि 'अश्क' हम ने कुछ इस के सिवा किया ही नहीं

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