जो चुप लगाऊँ तो सहरा की ख़ामुशी जागे
जो मुस्कुराऊँ तो आज़ुर्दगी भी शरमाए
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करता हूँ एक ख़्वाब के मुबहम नुक़ूश याद
आज ज़िंदाँ में उसे भी ले गए
लफ़्ज़ों से बना इंसाँ लफ़्ज़ों ही में रहता है
इन हज़ारों में और आप, ये क्या?
यादों ने ले लिया मुझे अपने हिसार में
तय कर के दिल का ज़ीना वो इक क़तरा ख़ून का
दरिया में है सराब अजब इब्तिला में हूँ
रोते रोते मिरे हँसने पे तअज्जुब न करो
मिरी नज़र में है अंजाम इस तआक़ुब का
दैर-ओ-हरम में दश्त-ओ-बयाबान-ओ-बाग़ में
मैं वो नहीं कि ज़माने से बे-अमल जाऊँ