मैं वो नहीं कि ज़माने से बे-अमल जाऊँ

मैं वो नहीं कि ज़माने से बे-अमल जाऊँ

मिज़ाज पूछ के दार-ओ-रसन का टल जाऊँ

वो और होंगे जो हैं आज क़ैद-ए-बे-सम्ती

वही है सम्त में जिस सम्त को निकल जाऊँ

फ़रेब खा के जुनूँ अक़्ल के खिलौनों से

ख़ुदा वो वक़्त न लाए कि मैं बहल जाऊँ

मिरा वजूद है मोमी कहीं न हो ऐसा

किसी की याद की गर्मी से मैं पिघल जाऊँ

जो चाहता है कि पस्ती में गिरते गिरते बचूँ

नज़र का अपनी असा दे कि मैं सँभल जाऊँ

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