क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता
क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता
ताज़ीर-ए-ख़ता मुझ को सुना क्यूँ नहीं देता
हैं नावक-ए-दिल-दोज़ मिरे यार के तेवर
इक बार वो सब तीर चला क्यूँ नहीं देता
यक-तरफ़ा मोहब्बत के तज़ब्ज़ुब से तो निकलूँ
इस राज़ से पर्दा वो हटा क्यूँ नहीं देता
लिखता भी है मुझ को सर-ए-क़िरतास-ए-मोहब्बत
मज़्मूम जो लगता हूँ मिटा क्यूँ नहीं देता
इतना ही फ़सुर्दा है अगर हाल पे मेरे
जल्वा कभी अपना वो दिखा क्यूँ नहीं देता
सर-गर्म-ए-सफ़र हूँ मैं तिरे दश्त में कब से
मुझ को मिरी मंज़िल का पता क्यूँ नहीं देता
ख़्वाबीदा-नसीबी भी तो तेरी ही अता है
सोई मिरी तक़दीर जगा क्यूँ नहीं देता
जो ताब-ए-तमाशा ही नहीं उस में 'रज़ा' तू
वो आतिश-ए-फ़ुर्क़त को बुझा क्यूँ नहीं देता
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