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घूम रहा है पीत का प्यासा - इब्न-ए-इंशा कविता - Darsaal

घूम रहा है पीत का प्यासा

देख तो गोरी किसे पुकारे

बस्ती बस्ती द्वारे द्वारे

बर में झोली हाथ में कासा

घूम रहा है पीत का प्यासा

दिल में आग दबी है डरना

आँखों में अश्कों का झरना

लब पर दर्द का बारा-मासा

घूम रहा है पीत का प्यासा

काँटों से छलनी हैं पाँव

धूप मिली चेहरे पर छाँव

आस मिली आँखों में निरासा

घूम रहा है पीत का प्यासा

बात हमारी मान के गोरी

सब दुनिया से चोरी चोरी

घूँघट का पट खोल ज़रा सा

घूम रहा है पीत का प्यासा

सूरत है 'इंशा'-जी की सी

बाल परेशाँ आँखें नीची

नाम भी कुछ 'इंशा'-जी का सा

घूम रहा है पीत का प्यासा

सोच नहीं साजन को बुला ले

आगे बढ़ सीने से लगा ले

तुझ-बिन दे इसे कौन दिलासा

घूम रहा है पीत का प्यासा

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