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ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!! - इब्न-ए-इंशा कविता - Darsaal

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

ऐ मतवालो नाक़ों वालो देते हो कुछ उस का पता

नज्द के अंदर मजनूँ नामी एक हमारा भाई था

आख़िर उस पर क्या कुछ बीती जानो तो अहवाल कहो

मौत मिली या लैला पाई? दीवाने का मआल कहो

अक़्ल की बातें कहने वाले दोस्तों ने उसे समझाया

उस को तो लेकिन चुप सी लगी थी ना बोला ना बाज़ आया

ख़ैर अब उस की बात को छोड़ो दीवाना फिर दीवाना

जाते जाते हम लोगों का एक संदेसा ले जाना

आवारा आवारा फिरना छोड़ के मंडली यारों की

देख रहे हैं देखने वाले 'इंशा' का अब हाल वही

क्या अच्छा ख़ुश-बाश जवाँ था जाने क्यूँ बीमार हुआ

उठते बैठते मीर की बैतें पढ़ना उस का शिआर हुआ

तौर-तरीक़ा उखड़ा-उखड़ा चेहरा पीला सख़्त मलूल

राह में जैसे ख़ाक पे कोई मसला मसला बाग़ का फूल

शाम सवेरे बाल बिखेरे बैठा बैठा रोता है

नाक़ों वालो! इन लोगों का आलम कैसा होता है

अपना भी वो दोस्त था हम भी पास उस के बैठ आते हैं

इधर उधर के क़िस्से कह के जी उस का बहलाते हैं

उखड़ी-उखड़ी बात करे है भूल के अगला याराना

कौन हो तुम किस काम से आए? हम ने न तुम को पहचाना

जाने ये किस ने चोट लगाई जाने ये किस को प्यार करे

तुम्ही कहो हम किस को ढूँडें आहें खींचे नाम न ले

पीत में ऐसे जान से यारो कितने लोग गुज़रते हैं

पीत में नाहक़ मर नहीं जाते पीत तो सारे करते हैं

ऐ मतवालो नाक़ों वालो! नगरी नगरी जाते हो

कहीं जो उस की जान का बैरी मिल जाए ये बात कहो

चाक-गिरेबाँ इक दीवाना फिरता है हैराँ हैराँ

पत्थर से सर फोड़ मरेगा दीवाने को सब्र कहाँ

तुम चाहो तो बस्ती छोड़े तुम चाहो तो दश्त बसाए

ऐ मतवालो नाक़ों वालो वर्ना इक दिन ये होगा

तुम लोगों से आते जाते पूछेंगे 'इंशा' का पता

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