Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_d6b3dc53241c2ec31c5e68d196748c3c, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती - इब्न-ए-इंशा कविता - Darsaal

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

या हमीं को ख़बर नहीं होती

हम ने सब दुख जहाँ के देखे हैं

बेकली इस क़दर नहीं होती

नाला यूँ ना-रसा नहीं रहता

आह यूँ बे-असर नहीं होती

चाँद है कहकशाँ है तारे हैं

कोई शय नामा-बर नहीं होती

एक जाँ-सोज़ ओ ना-मुराद ख़लिश

इस तरफ़ है उधर नहीं होती

दोस्तो इश्क़ है ख़ता लेकिन

क्या ख़ता दरगुज़र नहीं होती

रात आ कर गुज़र भी जाती है

इक हमारी सहर नहीं होती

बे-क़रारी सही नहीं जाती

ज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती

एक दिन देखने को आ जाते

ये हवस उम्र भर नहीं होती

हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता

हर किसी की नज़र नहीं होती

दिल पियाला नहीं गदाई का

आशिक़ी दर-ब-दर नहीं होती

(1718) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sham-e-gham Ki Sahar Nahin Hoti In Hindi By Famous Poet Ibn E Insha. Sham-e-gham Ki Sahar Nahin Hoti is written by Ibn E Insha. Complete Poem Sham-e-gham Ki Sahar Nahin Hoti in Hindi by Ibn E Insha. Download free Sham-e-gham Ki Sahar Nahin Hoti Poem for Youth in PDF. Sham-e-gham Ki Sahar Nahin Hoti is a Poem on Inspiration for young students. Share Sham-e-gham Ki Sahar Nahin Hoti with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.