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मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था - हुसैन ताज रिज़वी कविता - Darsaal

मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था

मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था

वो अपने शहर में और मैं दयार-ए-ग़ैर में था

हम अपने घर से बहुत दूर जा के लौट आए

किसी की आँख का काँटा हमारे पैर में था

मिला तो अश्क-ए-नदामत की तह में उस का सुराग़

किसी के दिल में न का'बे में था न दैर में था

मैं जानता हूँ लिया जा रहा था मेरा नाम

मैं दुश्मनों की तरह उस के ज़िक्र-ए-ख़ैर में था

न जाने कैसे मसाइल थे अपने रिश्तों में

सुकून सुल्ह के आलम में था न बैर में था

ये और बात कि वो सब से पहले डूब गया

तुम्हारा 'ताज' भी ख़ुद-आगही की तैर में था

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