है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ
है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ
और उस को भी है दुआओं पे ए'तिबार सा कुछ
कहीं तो गोशा-ए-दिल में उम्मीद बाक़ी है
कहीं है उस की नज़र में भी इंतिज़ार सा कुछ
कहा जब उस ने के आँखों पे ए'तिबार न कर
तो मैं ने माँग लिया दिल पे इख़्तियार सा कुछ
ये सारा खेल फ़क़त गर्दिशों का है आहंग
फ़ुज़ूल ढूँड रहे हो यहाँ क़रार सा कुछ
जो ले के आया था सैलाब ख़ुश्बूओं का कभी
वो भर गया है मिरी आँख में ग़ुबार सा कुछ
उतर चुका है बदन से तमाम नशा-ए-वस्ल
चढ़ा चढ़ा सा तबीअ'त पे है ख़ुमार सा कुछ
सुना है ये भी बुज़ुर्गी की इक अलामत है
सो मैं भी होने लगा 'ताज' ख़ाकसार सा कुछ
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