Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_2dc4b4253adbf9eaf6274fd92510ec50, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ - हुसैन ताज रिज़वी कविता - Darsaal

है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ

है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ

और उस को भी है दुआओं पे ए'तिबार सा कुछ

कहीं तो गोशा-ए-दिल में उम्मीद बाक़ी है

कहीं है उस की नज़र में भी इंतिज़ार सा कुछ

कहा जब उस ने के आँखों पे ए'तिबार न कर

तो मैं ने माँग लिया दिल पे इख़्तियार सा कुछ

ये सारा खेल फ़क़त गर्दिशों का है आहंग

फ़ुज़ूल ढूँड रहे हो यहाँ क़रार सा कुछ

जो ले के आया था सैलाब ख़ुश्बूओं का कभी

वो भर गया है मिरी आँख में ग़ुबार सा कुछ

उतर चुका है बदन से तमाम नशा-ए-वस्ल

चढ़ा चढ़ा सा तबीअ'त पे है ख़ुमार सा कुछ

सुना है ये भी बुज़ुर्गी की इक अलामत है

सो मैं भी होने लगा 'ताज' ख़ाकसार सा कुछ

(882) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hai Mere Gird Yaqinan Kahin Hisar Sa Kuchh In Hindi By Famous Poet Husain Taj Rizvi. Hai Mere Gird Yaqinan Kahin Hisar Sa Kuchh is written by Husain Taj Rizvi. Complete Poem Hai Mere Gird Yaqinan Kahin Hisar Sa Kuchh in Hindi by Husain Taj Rizvi. Download free Hai Mere Gird Yaqinan Kahin Hisar Sa Kuchh Poem for Youth in PDF. Hai Mere Gird Yaqinan Kahin Hisar Sa Kuchh is a Poem on Inspiration for young students. Share Hai Mere Gird Yaqinan Kahin Hisar Sa Kuchh with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.