राहत ओ रंज से जुदा हो कर
राहत ओ रंज से जुदा हो कर
बैठ रहिए कहीं ख़ुदा हो कर
लौट आया है आँख के दर पर
ख़्वाब-ए-ताबीर से रिहा हो कर
लुत्फ़ आया नज़र को जलने में
चाँद के सामने दिया हो कर
ऐ मिरे शेर अपनी ताबानी
देख उस शोख़ से अदा हो कर
हब्स होता गया ख़ुमार अपना
रंग उड़ते गए हवा हो कर
ख़ेमा-ए-गुल लपेट ले हमदम
देख सरसर चली सबा हो कर
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