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जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से - हुमैरा रहमान कविता - Darsaal

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

ऐसे हम दुनिया से छुप कर देखें ख़्वाब सुहाने से

सब कुछ समझे लेकिन इतनी बात नहीं पहचाने लोग

मिल जाता है चैन किसी को एक तुम्हारे आने से

हम तो ग़म की एक इक शिद्दत बाहर आने से रोकें

उस की आँखें बाज़ न आईं अंगारे बरसाने से

लोगो! हम परदेसी हो कर जाने क्या क्या खो बैठे

अपने कूचे भी लगते हैं बेगाने बेगाने से

देखो दोस्त! तुम्हारा मक़्सद शायद हमदर्दी ही हो

मेरा पैकर टूट गिरेगा वो बातें दोहराने से

घर का सन्नाटा तो 'हुमैरा' हंगामों की नज़्र हुआ

दिल की वीरानी वैसी की वैसी एक ज़माने से

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