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हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें - हुमैरा रहमान कविता - Darsaal

हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें

हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें

जो दोश पर लिए हो उस के बर-ख़िलाफ़ क्या करें

यक़ीन और गुमाँ की जंग से गुरेज़ था नहीं

जो फ़ैसला किया है उस से इंहिराफ़ क्या करें

वो दूसरों की आँख का ग़ुबार तो लिए रहे

तो अपने गर्द गर्द आईने को साफ़ क्या करें

जो मंज़िलें दिखाई थीं वो मुम्किनात में से थीं

पर अपनी हिम्मतों की बर्फ़ में शिगाफ़ क्या करें

'हुमैरा' ए'तिमाद का पहाड़ ढेर हो गया

और अब भी सोचते हैं उन से इख़्तिलाफ़ क्या करें

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