गुज़र जाएगी सारी रात इस में
मिरा क़िस्सा कहानी से बड़ा है
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मिरे दिल के अकेले घर में 'राहत'
तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है
बहुत ताख़ीर से पाया है ख़ुद को
ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का बहुत
जो मंज़िल तक जा के और कहीं मुड़ जाए
वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए
हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है
कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई
वो मुझ को आज़माता ही रहा है ज़िंदगी भर
बना कर एक घर दिल की ज़मीं पर उस की यादों का
वो इश्क़ को किस तरह समझ पाएगा जिस ने
आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा