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हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है - हुमैरा राहत कविता - Darsaal

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

बुझा चुकी थी जिसे वो दिया जला हुआ है

हुज़ूर आप कोई फ़ैसला करें तो सही

हैं सर झुके हुए दरबार भी लगा हुआ है

खड़े हैं सामने कब से मगर नहीं पढ़ते

वो एक लफ़्ज़ जो दीवार पर लिखा हुआ है

है किस का अक्स जो देखा है आईने से अलग

ये कैसा नक़्श है जो रूह पर बना हुआ है

ये किस का ख़्वाब है ताबीर के तआक़ुब में

ये कैसा अश्क है जो ख़ाक में मिला हुआ है

ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन

ये कैसा फूल सर-ए-शाख़-ए-जाँ खिला हुआ है

सितारा टूटते देखा तो डर गई 'राहत'

ख़बर न थी यही तक़दीर में लिखा हुआ है

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